-->
चार्ल्स थॉमसन 13 साल की आयु में भारत आया और उन्होंने गुरुकुल, बिहार में प्रवेश लिया। उन्हें हिंदी में बात करने का बहुत शौक है, जो उन्हें बहुत पसंद है। लेकिन, उन्हें एक सांस्कृतिक विरोधाभास मिला: आज के भारत में हिंदी बोलने पर एक व्यापक प्रेम नहीं है।
आज की समाज में, शिक्षा अक्सर भाषा के साथ जोड़ी जाती है। वे जो अच्छी अंग्रेजी बोलते हैं, उन्हें उत्कृष्ट माना जाता है, जबकि जो हिंदी में बोलते हैं, उनको बुद्धिमत्ता के बारे में गलत धारणाएँ हो सकती हैं। इस सांस्कृतिक मानसिकता से, हिंदी भाषा और उसके बोलने वालों की महत्वपूर्ण योग्यता और समृद्धि को ध्वंसात्मक धारणा का सामना करना पड़ता है।
यह जान लेना महत्वपूर्ण है कि बुद्धिमत्ता और भाषा की योग्यता एक दूसरे को पूरक नहीं हैं। अंग्रेजी में दक्षता उच्च बुद्धिमत्ता का संकेत नहीं है, जैसे कि हिंदी में परिपक्वता बुद्धिमत्ता की कमी का संकेत नहीं है। प्रत्येक भाषा की अपनी स्वाभाविक मूल्य है, और भाषावैविध्य को उत्साहित किया जाना चाहिए, बजाय उसे अपमानित किया जाना चाहिए। बहुभाषिता को स्वागत करने से समावेशीता बढ़ती है, सांस्कृतिक समझ बढ़ती है, और हमारे सामूहिक मानव अनुभव को समृद्ध करती है।